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Showing posts from September 23, 2012

मेरी दोस्त!

तुम्हे याद है अपना बचपन कितना बड़ा अपना घर। बड़े कमरे के बिचोंबीच  जंगला- जैसे किसी जज का ऑफिस जहा स्कूल से लौट कर हम होम वर्क करते थे और बाद में नींद तुम्हे याद है वो दिन   मुझे तेज बुखार था माँ ने मुह में कांच की न ली डाली थी बहार  निकाल    के बोली थी - १०३. हम सभी बच्चे खेल रहे थे तभी पापा ने तुम सबको डांट कर भगा दिया था - याद है तुम्हे ? मुझे आज तक समझ नही आया बड़े क्यो नही समझते  बच्चे क्या चाहते हैं ? उसी रोज़ रात में आँगन में सोते समय नींद खुल गई थी आकाश  में हजारों तारे toot    रहे थे हज़ारों   हज़ार रॉकेटों   की तरह । मैंने किसी को नही बताया आज तक माँ  कहती    है - टूटते तारे देखना अपशग...